Friday 30 October 2015

आज हमारे जीवन में राजनीति का एवं नेताओं का दखल इतना ज्‍यादा हो गया कि हम यदि अपने इलाके की किसी सामाजिक को समस्‍या को सुलझानें या उसकों दूर के लिए अपने ही द्वारा चुने गयें नेता को यदि कहे या लिख दें तो वह नेता और एवं उसके चमचे ये आरोप लगाने लगते है कि  वह हमारी विरोधी पार्टी का है और उस सामाजिक काम को ना करने के लिए नेता के साथ उसके इर्द गिर्द घूमने वालें लोग भ्‍ाी नेता की ही हाॅ में हॉ मिला देते है तो सब ये समझनें लगतें है कि जो नेता व उसके चमचे बोल रहे वही सही है । क्‍या कोई नेता उस सामाजिक काम करवाने की जिम्‍मेदारी लेता है, नही लेता है, वह और ना ही करवाता है और ना उसे किसी दूसरे को  करने देता है । यहा हमारें देश में सभी नेता लगभग एक ही थाली के चटटे बटटे है । सारे नेता चाहे वे किसी भी पार्टी के हो एक दूसरें की टॉग खीचने में लगे रहते है । देश की किसी भी छोटी से छोटी समस्‍या को किसी भी पार्टी  का नेता सुलझाना  चाहे तो पहले तो सुलझाने नही दिया जाता है यदि किसी कारण वश्‍ा सुलझा भी दिया तो उसी की पार्टी में उसकी इज्‍जत नही होती है और राजनीति केरियर खत्‍म कर देते है । इसके अनेको उदाहरण है जिनमें से एक  तो मेरे याद है । कभी एक नेता होते थे जगमोहन जी, जैसा काम उन्‍होने करके दिखाया कोई नही कर सकता लेकिन आज जगमोहन का नामोनिशान तक नही है । यदि उसका 10% भी आज के नेता कर दें, तो हमारें देश एक महान देश बन जाए, लेकिन हमारे देश के नेताओ को महान देश नही चाहिए उन्‍हे सिर्फ स्‍वयं महान  बनना है ।

हमें तथाकथित  आजादी को मिले 69 वर्ष हों गयें  है, इतने सालों में इतना विकास किया जा सकता कि अमरिका आज हमारें नीचे होता।  लेकिन आज हमें उसके सामने गिडगिडाना  पड रहा है । क्‍यों ?  क्‍योकि हमें आजादी तो मिली लेकिन उसकी बागडोर फिर काले अंग्रेजों के हाथों में चली गयी । आज जिस भी समस्‍या से भारत जूझ रहा है उसका कारण एक ही था जिसने अपने 15-30  वर्ष अंग्रेजी का पीठू बनकर गुजारे  जाते जाते अंग्रेज उसे ही यहा की सत्‍ता सौंप गये । तो हम अच्‍छे शासन की उम्‍मीद करते भ्‍ाी तो किससे करते । जी हॉ इन सब का कारण नेहरू था जो काला अंग्रेज था  जिसकी सारी शिक्षा दीक्षा उन्‍ही गोरे अंग्रेजो के बीच हुई । उसी की सत्‍ता पाने की लालसा ने दो एक साथ रहने वालें दों भाइयों को आपस  में लडाया और एक देश के तीन देश बना दियें  ।उसके बाद भी उसका मन नही भरा उसके बाद देश में आरक्षण के नाम पर सबको अलग अलग कर करके आपस में पूर्ण रूप से कलह का बीज बो दिया जिससे आज पूरा भारत त्रस्‍त है ।आरक्षण कमजोरों को उपर उठाने का एक तरीका था नाकि मापदण्‍डों से समझौता करना । सविधान में कही नही लिखा कि कोटे का व्‍यक्ति चाहे कोई योग्‍यता पूरी करें या न करें उसका चयन होगा । लेकिन यही तो उन लोगों की राजनीतिक पोलिसी थी कि सब आपस में इसी बात पर लडते रहे और हमें ही वोट करतें  रहें । इन लोंगों ने  तो कमजोर और पिछडें की परिभाषा ही बदल दी है । जब एक व्‍यक्ति आरक्षण का लाभ लेकर डाक्‍टर/आईएएस या अन्‍य कोई  बडी नौकरी पा लेता है क्‍या वह ऊपर नही उठा ? क्‍या फिर उसे या उसके बच्‍चों को आरक्षण की जरूरत है ? उसी की तरह क्‍या किसी दूसरें को ऊपर उठने का अधिकार नही है । लेकिन उस समय के नेताओ ने बस कुछ ही लोगो तक आरक्षण को सीमित कर दिया,  चाहे वह पाने का अधिकार कितना भी प्रबल क्‍यो न हो। जो एक बार लाभ ले लिया उन्‍ही को मिलता रहेगा । कोई दूसरा उसी की जााति का नही ले सकेगा । और यही हाल नेताओ का है नेता सिर्फ अपने परिवार वालों को या फिर रिस्‍तेदारों को ही पार्टी में समर्थन करते है । यदि उन नेताओं ने  आरक्षण को क्रीमीलेयर से जोड दिया होता तो आज गिने चुने ही परिवार आरक्षण से वंचित होते और देश खुशहाल होता ।लेकिन ये खुशहाली तो नेता चाहते ही नही उन्‍हे तो गरीबों  के नामपर योजनाए चलाकर उनका पैसा खाने में ही खुशहाली लगती है क्‍योंकि इसमें वोट देने वाले उनके शिकजें में होते है । नेताओ ने तो उन्‍हे फ्री का राशन देने के वायदों में बॉधा हुआ होता है । यदि नेता इस परिवारवाद में न हो तो वह काम कर सकता है ।लेकिन यहा तो एक ही परिवार के होने  चाहिए चाहे पार्टी कोई सी भी हो ।  आज आधे से ज्‍यादा नेता परिवार वाद से ग्रस्‍त है । जब एक वोटर सिर्फ एक जगह से ही वोट डाल सकता है तो नेता दो जगहों से चुनाव क्‍यों लड सकता है ? वोट जेल में है तो वोट नही डाल सकता है अौर नेता जेल में  है तो चुनाव लड सकताहै  । नही तो कानून होता कि जहा राशन कार्ड में नाम होगा वही से चुनाव लड सकता है  तो आज ये परिवार वाद की आधी समस्‍या कम होती । ऐसा क्‍यो ?  इन दोगलें कानूनों की वजह से आज भारत की ये दशा है । जब इसकी बुनियाद ही बेईमानी की नीव पर रखी गई थाी तो उससे अच्‍छी चीजों की अपेक्षाए कैसे की जा सकती है ? अबकी बार थोडा कुछ अलग हुआ है तो  वह उन नेताओ को रास  नही आ रहा है। अब वही नेता टांग खीचने में लगें है कि भारत क्‍यो सुधरे हमने तो अ्ंग्रेजों को वचन दिया है कि भाारत को गरीब और गरीब बनाते रहेगें ।



Tuesday 20 October 2015

श्रीमानजी केजरीअपने आप समझ रहे है कि भ्रष्टचार कम हो रहा है या तो केजरीजी जान बूझकर जनता को बेवकूफ बना रहे है या केजरीजी इसको समझना नही चाहते है  केजरीजी जहा चाहें वहा दिल्ली में भ्रष्टाचार देख सकते हैं  केजजीवालजी हा हल्ला करके भ्रष्‍टाचार के दाम आैर बढा दिये जहा काम 2000 हजार में होता था वहा पूरे 5000 में होता है लेकिन भ्रष्‍टाचार कम नही बल्कि दो गुना बढ गया है पहले जो काम बिना पैसे के हो जाते थे अब वे भी बिना पैसे के नही होते है कर्मचारियों के मन से अब से पहले जो थोडी बहुत शर्म आैर डर बाकि था वह भी आपके नेताओ ने खत् कर दिया है , अब तो सरे आम पैसे मांगते है मेरे साथ ऐसी घटना हो चुकी है इसलिए ये सब लिख रहा हू सबूत पेश कर सकता हू लेकिन होगा क्या काम करने के आैर पैसे बढ जाएगें ऐसे भाषण दे देने भर से भ्रष्टाचार नही मिट सकता


केजरीवालजी के सीताहरण के मोैके पर कहे गयें शब्‍दो ''समाज को मिलकर आजके रावण को मार देना चाहिए''  पर मेरी प्रतिक्रिया:-
नेता ही नही चाहते आज के रावण को मारना वरना आज के रावण की मजाल जो ऐसा कुछ करदे आज के रावण नेताओ के पाले हुए ज्यादा है किसी भी आज के रावण को जब पुलिस द्वारा पकडा जाता है तो वह किसी ना किसी नेता का रिस्तेदार अवश् निकलेगा आैर िफर वही नेता जो बडे बडे भाषण झाडतें है उसे बचाने की मुहिम में लग जाते है आैर सारें नेता छोटी छोटी बातों को बडी बडी बनाकर गन्दी से गन्दी राजनीति करने लगते हैं तो बताओं समाज कैसे मिलकर आज के रावण को मारने में सक्ष् होगा? नेता नही चाहते नारी का सम्मान हो वरना किस की मजाल जो नारी की तरफ आॅख भी उठा सके आप भी ये राजनीति करने के लिए कह रहे हो ,आपका मकसद सिर्फ महिलाओं के प्रति सहानुभूति बटोरना है ना कि उनका सम्मान करना आपकी सरकार है आैर बसों में महिलाओं के सीट मांगने पर कहा जाता है जहा महिला लिखा है वही बैठ जाओं बेचारी महिला लाचार होकर खडी रहती है कुछ बोलती नही है आैर कोइ पुरूष कुछ नही कहता है क्या इसे ही सम्मान कहोगें ? नही तो आदेश होना चाहिए महिला सीट है तो कोइ नही बैठेगा चाहे वह खाली रहे ये हेागा महिला का सम्मान क्या है केजारीवालजी में ऐसा सम्मान दिलाने की हिम्मत ? निकलवा सकते है ऐसा आदेश ?  पहले लोक पाल के पीछे पडे थे बहुमत नही था तो इस्तीफा देकर भाग गयें अब वह लोकपाल एक साल से याद नही है अब पुलिस के पीछे पडे है कि पुलिस मेरे अण्डर होनी चाहिए आपकों सिर्फ बहाने बनाना आता है आैर कुछ नही ।आपने हमेशा काम से भागना ही सीखा है ।पहले नाैकारी से भागे िफर अन्ना के समूह से िफर सी एम पद से अब यहा िफर से भागने का माैका तलाश कर रहे हो क्या ? बदलााव के लिए हमने अपना काम छोड छोड कर आपके लिए लोगो को समझाया कि हमने दोनो पार्टी कांग्रेस बीजेपी को देख लिया है नया बदलाव होना चाहिए लोगो ने किया, लोग मान गये आैर आज वही लोग मुझे कहते हैये था वों बदलाव जो दिल्ली को िफर से स्लम बनाने अपना वोट बैंक बढाने के लिए किया जा रहा है ? क्या जवाब दे उनको