Thursday, 26 November 2015

आज की स्‍थिति जागो जागो जनता

असहिष्‍णुता के नाम पर देश में अराजकता फैलाई जा रही है और कांग्रेस अपने मकसद में कामयाब हो रही है । कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जो सत्‍ता को हथियाने के लिए कुछ भी कर सकती है ये तो कांग्रेस के खून में है, इसके इतने उदाहरण इतिहास में है कि इतिहास में दूसरा कुछ है ही नही । यदि जनता थोडा सा भी सोचे कि क्‍यों हमारें एक देश के तीन देश बनें और वो भी लाखों लोगों की लाशों पर ? जब कांग्रेस का दिल लाखों लोगों की हत्‍याओं पर नही पसीजा, 1984 में लगभग 4700 सिक्‍खों के मारें जाने पर नही पसीजा, कार सेवकों की हत्‍याओं पर नही पसीजा, कश्‍मीरी पण्डितों को घर से बेघर कर दिया गया मारा गय  जब नही पसीजा, गोदरा काण्‍ड पर नही पसीजा, अभी हाल में 60 आदमी मुजफफरनगर दंगें में मारे गये तब नही पसीजा, उसमें तों कांग्रेस  सरकार के मुताबिक सबसें ज्‍यादा नुकसान उन्‍होने मुसलमानों का ही बताया था और 42 हत्‍यायें मुसलमानों की ही बतायी गयी थी तब नही पसीजा, क्‍यों ?  तब क्‍यों ये शब्‍द नही उभरा कि भारत में असहिष्‍णुता फैल गयी है ? मेरे देश की जनता इसे समझे,  क्‍योकि इन दिनों केन्‍द्र में कांग्रेस की सरकारें थी इसलियें इस शब्‍द का उदय नही हुआ, और अब केन्‍द्र में सरकार बीजेपी की है  जिसें कांग्रेस सहन नही कर पा रही है, जिसके चलतें सिर्फ एक हादसें को लेकर इतना बडा प्रोपगण्‍डा खडा कर दिया जिसमें सिर्फ एक इंसान की जान गयी । वह हादसा उत्‍तर प्रदेश में हुआ है क्‍या वहा की सरकार की उस हादसें के प्रति कोई जिम्‍मेदारी नही है? वहा की कानून व्‍यवस्‍था की जिम्‍मेदारी किसकी है ? और अब उसी उत्‍तर प्रदेश सरकार के दोगले नेता दूसरों पर उॅगली उठा रहें हैं । दूसरी तरफ कांग्रेस के चाटुकार लेखकों/फिल्‍मकारों/इतिहाकारों/साहित्‍यकारों आदि इस शब्‍द असहिष्‍णुता का उदय करके, उनकों कांग्रेस सरकार द्वारा दिये गयें पदकों को वापिस करकें कांग्रेस को समर्थन कर देश की जनता को गुमराह कर रहें है । पदक वापस करने वालों में ज्‍यादा से ज्‍यादा कांग्रेसी नेताओं के चाटुकार और रिश्‍तेदार हैं ।


 अभी आमिर खान नें अपने साक्षात्‍कार में कहा था कि 6 महीने से देश में असहिष्‍णुता फैली है, ये सब बातें देखतें हुए सही लगा रहा है कि असहिष्‍णुता  फैल रही है वह केवल कांग्रेस  के अनुयाईयों में । सच में वे सहिष्‍णु नही हो पा रहें है । कांग्रेस को लगने लगा है कि उनका खेल खत्‍म । इसीलिए तो राहुल बच्‍चों से ईष्‍यालुता से भरें सवाल पूछतें है । कांग्रेस ने जिस जिस पार्टी के खिलाफ चुनाव लडा है  उन्‍ही के साथ मिलकर अपना जनाधार पानें की गंदी से गंदी चालें चल रही है । क्‍या इन सब क्रिया कलापों को देखकर नही लगता कि कांग्रेस के नेता कुछ भी कर सकतें हैं , करा सकते है । दिल्‍ली में जब लगा कि कांग्रेस हार जाएगी तों बीजेपी कों हरानें के  लिए अंतिम क्षणों में आप पार्टी कों अपनी वोटे डलवाकर समर्थन करना क्‍या जनता के प्रति गददारी नही है ।  इसका निष्‍कर्ष यही निकलता है कि कांग्रेस के सारें लोंग असहिष्‍णु है एवं सबकों  अपनें चमचों के माध्‍यम सें असहिष्‍णु बनाना चाहतें है और वे इस  सरकार को भी  ऐसे ही मुददों में उलझायें रखना चाहती है जिससें जनता में गलत संदेश जायें और कोई काम न कर पायें । इन सब कारनामों में कांग्रेस का साथ वें कुछ सरकारी अधिकारी गण भी दे रहें जिन्‍होने कांग्रेस सरकार के अधिन काम किया है ।  कांग्रेसी नेता कितनें ईष्‍यालु और स्‍वालम्‍भी है कि वर्तमान सरकार कों काम नही करनें देने के लिए ऐसी घिनौनी हरकतें कर रहे है ?  जागो जनता जागों और अपने विवेक से काम करों .......

Wednesday, 18 November 2015

दिल्‍ली में केन्‍द्रीय कर्मचारियों, दिल्‍ली सरकार, एवं प्राइवेट सेक्‍टरों के मुख्‍य कार्यालय जहॉ है उसे सी0 जी0 ओ0 कम्‍पलेक्‍स के नाम से जाना जाता है जिसमें 14 ब्‍लाक  है और प्रत्‍येक ब्‍लाक में किसी न किसी संगठन के मुख्‍य कार्यालय है जिनमें नौकरी करने वाले सरकारी व गैर सरकारी कर्मचारियों की संख्‍या 20,000 से ऊपर है, इसी के साथ लगे हुए दूसरे कुछ अन्‍य संगठनों के 7 से 8 मुख्‍य कार्यालय है जिनमें 12000 से ऊपर सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारी  नौकरी करते हैं इसी के साथ में दिल्‍ली विश्‍वविद्धालय का एक का‍लिज भी है । इन सब कार्यालयों में से लगभग 18000 व्‍यक्ति प्रत्‍येक दिन सी0जी0ओ0 कम्‍पलेक्‍स से दिल्‍ली सरकार की डी टी सी बसों में दिल्‍ली के विभिन्‍न हिस्‍सों से अपने कार्यालय आने जाने हेतु मुश्किल से भरा सफर करते है । लेकिन आश्‍चर्य देखिए दिल्‍ली सरकार व डीटीसी का इस पूरे क्षेत्र में डीटीसी ने एक भी बस स्‍टेण्‍ड बनवाना उचित नही समझा, जहा आदमी बैठ सके या धूप बरसात से बच सके, ऐसा क्‍यों ? यहा से जब इतना यात्री डीटीसी को मिलता है तो यहा एक पास बनवाने का कार्यालय भी बनवाना चाहिए था या नही ? लेकिन नही बनवाया । एक तरफ तो डीटीसी हर साल घाटा दर्शाती है और दूसरी तरफ जहा से फायदा होता है वहा सुविधाए नही दे सकती, समुचित मात्रा में बसे नही चला सकती । इस परिक्षेत्र से सबसे ज्‍यादा यमुना पार से लोग आते जाते है लेकिन यहा से यमुना पार के लिए एक भी डीटीसी की बस उपलब्‍ध नही है । सरकार के कुछ लोगों ने सिर्फ अपने थोडे से फायदे के लिए ही यहा से बसे चलवाने में कोताही बरती है  जिससे यहा प्राइवेट बसे लगी है जो इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं । लेकिन पिस वे लोग रहे है जो डीटीसी का पास बनवातें है । डीटीसी बसों के परिचालक से डिपों मैनेजर केश का हिसाब तो मॉगता है वो कितने यात्रियों ने बस में सफर किया ये  क्‍योे नही पूछता ? क्‍योंकि रोज आने जाने वाले 90 % से ज्‍यादा यात्री पास बनवाते है और डीटीसी को अग्रिम पैसा देते है फिर भी डीटीसी ऐसे पास धारियों को समुचित मात्रा में बसे नही देती क्‍यों ? सीजीओ कम्‍पलेक्‍स डीटीसी का पास सेक्‍शन होनी ही चाहिए । और यमुना पार के लिए समुचित बसे लगनी चाहिए । शाम को नेहरू पैलेस से (वाया भैरो सिंह मार्ग,) डीटीसी की एक बस सीजीओ होकर जाती थी जिसमे सीजीओ से 30 से 40 सवारी जाती थी लेकिन चार्टड वालों ने डिपो मैनेजर से साॅठ गाॅठ करके उसे वाया आईटीओ करवा दिया जिससे वह बस खाली जाती है । कन्डक्‍टर को सख्‍त हिदायत होनी चाहिए कि वो अपने मेमों में यात्रा करने वालें कुल यात्री भी लिखवायें । कितने पास वालें चले । कितना स्‍टाफ चला । और अन्‍य । 

Tuesday, 17 November 2015

पुरस्का्र लौटाने वाले अब क्यो नही लौटा रहे है पुरस्‍कार ? क्या चार दिन में अब देश में बदलाव आ गया है ? ये पुरस्कार लौटाने वाले वही लोग है जिनको कांग्रेस के नेताओ की मेहरबानी से ये पुरस्कार मिलें हैं । यदि किसी को कोई शक है तो उनके दस्तावेज देख लिजिए । हर कोई किसी नेता का रिस्‍तेदार अवश्य मिलेगा । यदि इन्हे ये पुरस्कार उनकी योग्यता के आधार पर मिलता तो उन्हे इसकी अहमियत पता होती । उन्हे पता है यदि उनका प्लान कामयाब हो गया तो ऐसे बहुत पुरस्कार दुबारा मिल जाएगें । उन्हे देश की इज्जत से ज्या‍दा अपना मकसद प्यारा है । ये ऐसे लोगों के रिस्तेदार है जिन्होने अपने फायदें के लिए एक देश के तीन हिस्से करवा दिये और दो भाइयों में ऐसी चिंगारी लगा दी जो मुश्किल से ही बुझ सकती है ।क्योकि जब भी कुछ शान्ति का माहौल बनता है ये लोग तुच्छ से तुच्छं हरकते करने लगतें है । दरबारी चाटुकारों ने ऐसे ही समय क्यों पुरस्का र लौटाने का परोपगण्डा रचा, जब सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्य्ता की बात चल रही थी या किसी स्टेट में चुनाव चल रहे थें । इन पदक लौटाने वालों को एक साल पहले ही 50 से ज्यादा इंसान मुजफफरनगर हिंसा के दौरान मारे गयें थें और जबरदस्त आक्रोश चारो ओर फैल गया था वो दिखार्इ नही दिया तब क्यों इन चाटुकारों की आत्मा नही जागी । यदि उस समय जागते तो हो सकता है दादरी जैसा काण्‍ड होता ही नही । दादरी में पी‍डि‍त पक्ष के बार बार हाथ जोडने पर भी नेताओ ने राजनीति करनी नही छोडी आैर उसे पुरस्‍कार लौटाने की राजनीति में बदल दिया । ये नेता अपने फायदे के लिए गरीब जनता को भडकाते है और फायदा उठाते है । मेरी सभी इंसानों से करबद्ध प्रार्थना है कि विवेक से काम ले और ऐसे लोगों को पहचानों जो अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए देश और समाज को बलि चढाना चाहते है । ये पुरस्कार लौटाने वाले सारे उच्च हस्तीे है और आपकी सहानुभूति पाने के लिए ये घटिया हथ्‍ाकण्डे अपना रहे है जिससे इन्हे भी फिर से दुबारा प्रसिद्धि मिल जाये और हो सके तो राजनीति में ही सैट हो जायें । अब सारा मामला शान्त हो गया है । क्योकि जनता इनके प्रोपगण्डे में नही फॅसी और जनता ने अपना विवेक नही खोआ तो सारे दरबारी चाटुकार शान्त हो गयें । 

Tuesday, 10 November 2015

आरक्षण की राजनीति

 सविधान में आरक्षण का प्रावधान सिर्फ 10 वर्षो के लिए निम्न श्रे्णी के तबके को उपर उठाना और उनकी इज्जत करवाना था । लेकिन हमारे नेताओ ने इसका गलत इस्तेमाल करके सिर्फ वोट बैंक का जरिया बना दिया और इसकी समय अवधि  लगातार बढाते रहे हैं जिसका खामियाजा देश के वही निम्न श्रेणी के लोग ही भुगत रहे है क्यो कि जिन्हे एक बार आरक्षण मिला तो वे ही लेते जा रहे है लेकिन उसी श्रेणी के दूसरो को आरक्षण का लाभ नही मिल पा रहा है यदि इसमें आरक्षण का लाभ लेकर निम्न श्रेणी का एक आदमी आई एएस /आईपीसी/डाक्टर/इंजीनियर या अन्य पद पर राजपत्रित अधिकारी बन जाता है तो वह व उसका परिवार सविधान के अनुसार इज्जत और पैसा पाकर उपर बढ जाता है अब उस परिवार को आरक्षण का लाभ क्यो ? उसी जाति के दूसरों को क्‍यो नहीं ? यदि हमारे नेता गण आरक्षण को सही दशा में लागू करते तो आज कोई आरक्षण का हकदार बचता ही नही । सब परिवारों को आरक्षण मिल गया होता । लेकिन नेता गण ये नही चाहते थे उन्हे तो अपने वोट पक्के करने है ।आरक्षित श्रेणी को अपने आस्तिक रखना है नाकि उन्‍हे काबिल बनाना । जनता या देश जाये भाड में । अब ये जहर इस कद्र फैल गया है कि कोई भी सरकार इसे सुधारने की हिम्मत भी नही कर सकती क्योकि जिनकों बिना मेहनत के सब कुछ मिल रहा है तो उनको तो महसूस होगा ही । कांग्रेस पार्टी के नेताओ का बार बार ये कहना कि देखे कैसे करेगी ये सरकार काम हम देखेगें । इसका साफ मतलब है कि कांग्रेस ने तो देश के बीच ऐसा महौल तैयार कर दिया है कि कोई भी सरकार आये कुछ काम ही नही कर सके, कुछ भी करने की सोचे उसे उसमें ही उलझा दो  और हम तो  है ही खिलाडी । कांग्रेस पार्टी के नेता ना तो केन्‍द्र में और ना दिल्‍ली सरकार को काम करने देना चाहते है  क्‍योकि यदि ये दोनो पार्टिया  काम करने में सफल हाे गयी तो कांग्रेस का पत्‍ता साफ ।  इन नेताओ के कारण ही आज अयोग्य लोगों का चयन होता है और जो लोग योग्य है वे चाहे गरीब हो उनका चयन नही होता । आरक्षण के लिए भी कुछ मापदण्ड होने चाहिए थे आरक्षण मे आने वालों को उस लेवल तक लाये जो नौकरी का मापदण्डं है चाहे उसे सरकार को एकस्ट्रा क्लासे ही क्यों न करवानी पडे । दूसरें उनको सामान्‍य श्रेणी से केवल दो से तीन % तक की ही छूट दी जाती । इससे देश मे उच्‍च पदों पर अयोग्य लोगो की संख्या में बढोत्तरी न होती । आज स्थिति ये है कि आरक्षण श्रेणी के बच्चे का दाखला या नौकरी सामान्य बच्चे के मुकाबले 30 से 40 % तक की छूट के साथ मिलते है तो अयोग्यता तो बढेगी ही । जो आरक्षित श्रेणी का उम्‍मीदवार सामान्य श्रेणी के साथ मेहनत करके आगे बढता है उसे तो आरक्षित श्रेणी में गिना ही नही जाता है । इससे सामान्य श्रेणी के गरीब बच्चे भी अपने हिस्से से वंचित हो जाते है । हमारे देश को जो भी नुकसान उठाना पड रहा है उसका मूल कारण दोहरे मापदण्ड है । जब सामान्य श्रेणी के लोग आरक्षित श्रेणी में शामिल नही हो सकते है तो आरक्षित श्रेणी के लोग सामान्य श्रेणी में भी शामिल नही होने चाहिए । लेकिन यहा तो होते है । ये स्थिति देश के युवाओं में आक्रोश का कारण बनती जा रही है और यही हाल रहा तो ये एक विकराल रूप ले सकती है । जातिय दंगें इस आरक्षण के दोहरे मापदण्डों के कारण ही हो रहे है। यदि आज जो भी आारक्षण मॉगें उसे दे देना चाहिए बस उसके साथ क्रीमीलेयर की शर्त जोड दीजिएगा तो कुछ हद आरक्षण का लाभ जरूरत मंदो को मिल सकेगा । यदि आरक्षण के नियमों पर जल्दी ही कुछ विचार विमर्श नही किया गया तो आने वालें समय में यह सरकार और आम जनता के लिए काफी जटिल समस्या होगी । जय हिन्‍द

Monday, 9 November 2015

असहिष्‍णुता (असहनशीलता)

मै पिछले कई दिनों से अखबारों में और टी वी समाचारों में एक शब्‍द असहिष्‍णुता का प्रयोंग  बार बार देख रहा हॅू । मै धन्‍यवाद देना चाहूंगा  उसे जिसने पहली बार अपने मतलब के लिए इस शब्‍द का धामिर्क स्‍त्‍र पर  प्रयोग किया और लोगो का ध्‍यान  इस शब्‍द की ओर खीचने में भी कामयाब रहा । उक्‍त शब्‍द के बारें में कई मेरे जानकारों ने पूछा कि  इस शब्‍द का असली मतलब क्‍या है और देश के चापलूस लोग इस शब्‍द का बार बार इस्‍तेमाल क्‍यों कर रहे है । मैने कहा यही तो दरबारी लेखको  का दिमागी खेल है जनता को कैसे मूर्ख बनाये ये तो चापलूस लेखक भलीभाति जानते है । मैने उन्‍हे बताया कि इस शब्‍द का अर्थ है असहनशीलता,  तो उन लोगों का जवाब सुनकर मुझे बडी खुशी हुई । उन्‍होने कहा कि धामिर्क असहनशीलता कहा है,  असहनशीलता तो  अब ये लोग पदक लौटाकर फैलाना चाहते है । दादरी जैसी घटना इंसानियत के नाम पर कलंक है लेकिन धामिर्क असहनशीलता नही कही जा सकती । क्‍योकि वहा के लोगों ने जिस तरह से नेताओ से बार बार वहा न पॅहुच कर माहौल खराब न करने की सभी धर्म के ठेकेदारों से अपील की थी । जो हादसे के भुगत भोगी है उन  लोगों ने हाथ छोडकर उस गॉव में आने के लिए मना किया  यदि उन्‍हे वहा किसी भी प्रकार का कष्‍ट होता तो वे इस प्रकार नेताओं से इस मामले पर राजनीति न करने के लिए हाथ जोडकर नेताओ से विनती न करते । ये चालें  तो कोई और ही चल रहा है जो दो भाईयों/पडोसियों/गाववालों/हमदर्दों के बीच नफरत की दीवार खडी करके अपना उल्‍लू सीधा करना चाहता है । बस उसे ही हम लोंगों को पहचानना है जो ये बीज बोना चाहता है । तो भाईयों अपना इंसानियत का धर्म मत भूलों । यद‍ि ये धार्मिक अ‍सहिष्‍णुता है तो इससे पहले तो लगभग हादसे हुए है जिनमे 10 से उपर ही लोग मारे गयें थें तब ये ले‍खक या इतिहासकार कहा थें तब क्‍यों इन्‍होने पदक वापिस नही किये । लेकिन इन पदक लौटाने वालों का असली मक्‍सद पदक लोैटाना नही है । उनका असली मक्‍सद सुरक्षा परिषद में मिलने वाली स्‍थाई सीट को रोकना है अौर अपने देश की बेइज्‍जती करना है जो लोग एक देश के तीन देश करने से नही हिचके वे ऐसा कैसा होनें दे । इसके पीछे बहुत बडी लोबी लगी हुई है । इसलिए मेरे देश के सच्‍चे नौजवानों नेताओं के गलत ब्‍यान बाजी में मत फॅसों । अपने विवेक से काम लों । गॉव में जब कोई कष्‍ट होता है उसका पडोसी ही उसके काम आता है  कोई भी नेता काम नही आता है । आज तक इतने दंगे हुए क्‍या कभी कोई नेता या उसका परिवार उसमें मारा गया । नही मारा गया । उनमे मरने वालें रोज काम काज करनेवालें  गरीब लोग होतें है । इस बात को समझों मेरे प्‍यारे दोस्‍तों । 

Friday, 6 November 2015

असहिष्‍णुता (असहनशीलता/चिडचिडापन)

असहिष्‍णुता
मै न तो कोई लेखक हॅू, ना इतिहासकार,  ना साहित्‍यकार,ना फिल्‍मकार  और ना ही कोई वैज्ञानिक हॅू  मुझे ऐसा कोई पदक भी नही मिला जिसे लौटाकर मै कांग्रेस के अब तक के शासन का विरोध कर सकू  अपने दिल का दर्द ब्‍या कर सकू । भारत के साथ आजाद हुए देश कहॉ से कहॉ पहॅुच गयें । एक तरफ तो हम मंगल ग्रह पर पहुॅच गये और परमाणु बम बना लिये दूसरी तरफ आज भी हमारें  देश में गरीबों के नाम हजारों  योजनाऐ चलने और आरक्षण होने के  बाद भी करोडों लोंग और बच्‍चे  भुखे मर रहे है  क्‍यो ? क्‍योकि  ये योजनाऐ और आरक्षण  गरीबों के लिए  न होकर नेताओ के चापलूसों के लिए ही था । गरीबों के नाम पर आज नेता और उनके चापलूस ही तो देश में मजे कर रहे है । ऐसा ही एक और उदाहरण जनता को देखने को मिल रहा है जो कांग्रेस की पोल खोल रहा है और वो है पदका का  लौटाना । ये सारे पदक कांग्रेस के शासन  काल में  दिये गयें है ।
जैसी राजनीति चापलूस लेखकों ने हिन्‍दी को न बढने के लिए कर रखी है वही लेखक ऐसे ऐसे शब्‍दों का प्रयोग करके और वही चापलूस लेखक अपने पदक वापस करके जनता को गुमराह करके देश को अस्थिर करने का प्रयास  कर रहे है । यदि ये  पदक इन लेखको  को अपने दम पर मिले होते तो वे इनकी अहमियत समझतें और ये रास्‍ता नही  अपनाते । ये पदक उन्‍हे कांग्रेस के नजदीकी होने  और चापलूसी के बदले मिले है, नाकि उनकी काबिलियत के बल पर । कांग्रेस के वही नेता लोग सत्‍ता के दौरान जिनकी सिफारिश पर ऐसे चापसूसों को पदक दिये गये है दबाव बनाकर वापिस करवा रहे हैं ताकि आज की सरकार को बदनाम कर सके और वह काम की तरफ ध्‍यान न देने के बजाय इस काम में उलझ जाय । इसको जनता तर्क के साथ समझ सकती है :

क्र  नाम/स्‍थान दिनाक स्‍थान मृत्‍यु
1 1984 सिक्‍ख दंगे 31 अक्‍टूसे 04 नव 1984 दिल्‍ली 2800 सिक्‍ख
2 देसरी ग्राउंड लुधियाना 28 मार्च 1986 लुधियाना पंजाब 13 हिन्‍दू
3   29 मार्च 1986 जालंधर पंजाब २० हिन्‍दू लेबर
4 बस पैसेंजर सामूहिक हत्‍या 25 जुलाई 1986 मुक्‍तसर पंजाब 15 हिन्‍दू
5 बस पैसेंजर सामूहिक हत्‍या 30 नव 1986 खुददा पंजाब 24 हिन्‍दू
6 हाशिमपुरा सामूहिक हत्‍या 22मई 1887 मेरठ उ0 प्र0 42 मुस्लिम
7 बस पैसेंजर सामूहिक हत्‍या जुलाई 1987 फतेहाबाद हरियाणा 80 हिन्‍दू
8 जगदेब कला सामूहिक हत्‍या 06अगस्‍त  1987 पंजाब 13हिन्‍दू
9 राजबाह सामूहिक हत्‍या 31मार्च 1988 पंजाब 18 हिन्‍दू
10 भागलपुर दंगा अक्‍टू 1989 भागलपूर
बिहार
1000 हिन्‍दू
और मुस्लिम
11 हिन्‍दू पडितों का जातीय सफाया 1990 कश्‍मीर 400 हिन्‍दू
12 गावाकाडल सामूहिक हत्‍या 20 जन 1990 श्रीनगर
कश्‍मीर
50 कश्‍मीरी प्रदर्शनकारी
13 रेल यात्री सामूहिक हत्‍या 15 जून 1988 लुधियाना
पंजाब
80 हिन्‍दू
14 रेल यात्री सामूहिक हत्‍या दिस 1988 लुधियाना
पंजाब
49 हिन्‍दू
15 बम्‍बई दंगे दिस 1992 से जन 1993 मुम्‍बई 575 मुस्लिम,      275 हिन्‍दू,             45  अज्ञात और  5 अन्‍य
16 सपोर सामूहिक हत्‍या 06 जन 1993 सपोर कश्‍मीर 55 मुस्लिम
और हिन्‍दू
17 बिजबेहरा सामूहिक हत्‍या 22अक्‍टु 1993 बिजबेहरा कश्‍मीर 50 मुस्लिम
और हिन्‍दू
18 लक्ष्‍मनपुर सामूहिक हत्‍या 01दिस 1997 अरवाल बिहार 58
19 वंधामा सामूहिक हत्‍या 25 जन 1998 वंधामा जम्‍मू कश्‍मीर 23 हिन्‍दू
20 प्रानकोट सामूहिक हत्‍या 17  अप्रेल 1998 जम्‍मू और कश्‍मीर 26 हिन्‍दू
21 चपनारी सामूहिक हत्‍या 19 जून 1998 चपनारी जम्‍मू और कश्‍मीर 25 हिन्‍दू
22 चाम्‍बा सामूहिक हत्‍या 03 अगस्‍त 1998 चांबा हिमाचल प्रदेश  35 हिन्‍दू
23 चित्‍तीसिंहपुरा सामूहिक हत्‍या 20 मार्च 2000 चित्‍तीसिहपुरा जम्‍मू कश्‍मीर 36 सिक्‍ख
24 गौरंगाटीला सामूहिक हत्‍या 2000 त्रिपुरा 16 गैर आदिवासी हिन्‍दू
25 बागबेर सामूहिक हत्‍या 20 मई 2000 त्रिपुरा २५ गैर आदिवासी हिन्‍दू
26 त्रिपुरा आदिवासी सामूहिक हत्‍या 1999; 2000 त्रिपुरा २० आदिवासी हिन्‍दू
27 नानूर सामूहिम हत्‍या 27 जुल 2000 पश्चिमी बंगाल 11 मजदूर
28 अमरनाथ तीर्थ यात्री सामूहिक हत्‍या  01 अग 2000 जम्‍मू और कश्‍मीर 30  हिन्‍दू तीर्थयात्री
29 किस्‍तवाड सामूहिक हत्‍या 03 अग 2001 जम्‍मू और कश्‍मीर 19 हिन्‍दू
30 गोधरा सामूहिक हत्‍या 27 फब 2002 गोधरा गुजरात 59 हिन्‍दू
31 गुजरात दंगा 28  फब 2002 अहमदाबाद 2,044 मारे गये   (1224 मुस्लिम
और 790 हिन्‍दू)
32 गुलबर्ग सौसायटी सामूहिक हत्‍या 28 फब 2002 अहमदाबाद 69 (48 मुस्लिम 21 हिन्‍दू)
33 नरौदा पातिया सामूहिक हत्‍या 28 फब 2002 नरोदा अहमदाबाद 97 मुस्लिम
34 रघुनाथ हिन्‍दू मंदिर सामूहिक हत्‍या 30 मार्च 2002 जम्‍मू और कश्‍मीर 11 हिन्‍दू मरे    
20 जख्‍मी       (हिन्‍दू भक्‍त)
35 कासिम नगर सामूहिक हत्‍या 13 जुल 2002 जम्‍मू और कश्‍मीर 29 हिन्‍दू 
36 अक्षरधाम मंदिर हमला 24 सित 2002 गुजरात 29 हिन्‍दू मरे    
79 जख्‍मी      (हिन्‍दू भक्‍त)
37 रघुनाथ हिन्‍दू मंदिर हमला 24 नव 2002 जम्‍मू और कश्‍मीर 14 हिन्‍दू मरे 
  45 जख्‍मी      (हिन्‍दू भक्‍त)
38 नादीमार्ग सामूहिक हत्‍या 23 मार्च 2002 जम्‍मू और कश्‍मीर 24 हिन्‍दू
39 कालूचक 14 मई 2002 जम्‍मू और कश्‍मीर 31 हिन्‍दू
40 मराड सामूहिक हत्‍या मई 2003 केरल 08 मरे      
  58 जख्‍मी
41 वाराणसी बम विस्‍फोट मार्च 2006 उत्‍तर प्रदेश 28 हिन्‍दू मरे  
  101 जख्‍मी      (हिन्‍दू भक्‍त)
42 डोडा सामूहिक हत्‍या 30 अप्रेल 2006 जम्‍मू और कश्‍मीर 35 हिन्‍दू
43 समझौता एक्‍सप्रेस सामूहिक हत्‍या 18 फब 2007 दिवाना  स्‍टेशन 68 मरे    ज्‍यादातर पाकिस्‍तानी
कुछ भारतीय
44 टुमुधीबांध सामूहिक हत्‍या अग 2008 उडीसा 5 हिन्‍दू  
45 कण्‍डमाल दंगा अग 2008 उडीसा 42 इसाई
46 मुम्‍बई  26 नव 2008 मुम्‍बई  164 आमनागरिक 11 हमलावर मरे  600 जख्‍मी
47 दंतेवाडा बम विस्‍फोट 17 मई 2010 छत्‍तीसगढ 76 नागरिक       
48 मुजफफरनगर दंगे 25 अगस्‍त 2013 से  17सितम्‍बर 2014 उत्‍तर प्रदेश  42 मुस्लिम    
  20 हिन्‍दू    
   93 जख्‍मी
 उपरोक्‍त दंगो मे काफी आम नागरिक बिना खता के मारे गये उस  समय ये चापलूस और दरबारी  लेखक, कवि, फिल्‍मकार, वैज्ञानिक और साहित्‍यकार कहॉ सो रहे थे  ? 
क्‍या एक अख्‍लाक के सामूहिक दंगे में मारे जाने  से इनका जमीर जागा है या ये लोग जनता को गुमराह करके  देश में सचमुच अव्‍यवस्‍था फैलाने की साजिस रच रहे है जिसके पीछे उन सबका हाथ हो सकता है जिनके द्वारा इनको लौटाये जाने वाले  सम्‍मान की प्राप्ति हुई है । मेरी जनता से अपील है कि अपने विवेक से काम लें और ऐसे चापलूस और दरबारी लेखकों, साहित्‍यकारों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों, फिल्‍मकारों और कवियों के बहकावें में मत आना ........... वरना ये लोग अपने साथ साथ्‍ा देश कों और जनता को बरवाद कर देंगें ।

Wednesday, 4 November 2015

अब से पहले भी दूसरी सरकारों के शासनकाल में इससे बडे बडे दंगे हुए है उस समय किसी ने भी ऐसी बाते नही की, क्या सिर्फ इस 1 साल में ही सारा कुछ इसी सरकार ने कर दिया है सारी पाटियों का एक जूट होना ये दर्शाता कि उन लोग की अब खैर नही जो देश के साथ गददारी करते आ रहे है ,  और कांग्रेसी नेताओं का बार बार ये कहना देखते है  कैसे ये सरकार काम करेगी, कैसे देश का विकास करेगी क्‍योंकि उन्‍हे घमण्‍ड है कि कांग्रेस ने इतने सालों तक जो जहर देशवासियों के दिलों में घोला है उसे कैसे दूर किया जायेगा । उस जहर को और सबकों एक करने की कोशिश से सारी पार्टिया घबरा रही है   और उलटे पुलटे ब्‍यान देकर  सरकार को  उकसा रही है इनके कई उदाहरण पिछले दिनों में  विपक्षी नेताओं के ब्‍यानों से पता चलता है  जिन नेताओ को गरीबों ने नाम पर फ्री का खाने की आदत पड गयी थी  वों कैसे इतनी अासानी से अपनी आदत छोड देगें । उन्‍हे तो कुछ ना कुछ खुरापात करनी ही है । लेकिन जनता अब सब समझ गयी है क्यों ये सब किया जा रहा है । ये इसलिए किया जा रहा है कि आप लोग सच्चाई को पचा नही पा रहे है और उसे दूसरा रूप देकर जनता को गुमराह करने में लगें हो । देश के अन्य राज्यों में भी सीएम है लेकिन किसी ने भी दूसरों राज्यों के हादसों में उॅगली नही की लेकिन दिल्ली के सीएम और आप पार्टी के लोग लगातार जनता को भडकाने में लगें है कोई कसर नही छोड रहे है नये नये तरीके अपना रहे है । क्या दिल्ली के सी एम और आप पार्टी के पास लोगों को भडकाने के सिवाय काम नही बचा है ? जितना जोर दिल्ली के सी एम जनता को भडकाने में लगा रहे है उतना जोर दिल्ली के विकास में लगायें तो दिल्ली स्वर्ग बन सकती है । लेकिन केजरी जी तो देश के प्रधानमंत्री का सपना देख रहे है । 49 दिन मे इस्तीफा देना भी पी एम बनने का कारण था  नाकि लोकपाल बिल । उस समय सब पार्टियों  ने आपको आश्‍वासन दिया हुआ था कि हम आपकों को ही समर्थन देगें वरना आप इस्‍तीफा देने वाले नही थें । जनता सब समझ गयी है । आप दिल्ली के सी एम सिर्फ कांग्रेस की गददारी की वजह से हो अगर उसके नेताओ ने चुनावों से ठीक पहले जनता को आपका सपोर्ट करने के लिए न कहा होता तो तस्वीर दूसरी होती । इसीलिए तो शीला के खिलाफ वाला बैग गुम हो गया, ये बैग का खोना ही तो कांगेस के अहसानों का बदला है । चुनावों से पहले वाले सारे दावे हवा हो गयें । यदि ऐसा मौका मिलने के बाद भी आपने दिल्ली का विकास नही किया तो आप सी एम भी नही बन पाओगें । हा यदि दिल्ली में काम किया तो हो सकता है कुछ चमत्कार हो जाय। लेकिन ऐसे झुग्गी डलवाने से, फुटपातों पर कब्जा करवाने से कुछ नही होने वाला, क्योंकि आपको सबसे ज्यादा वोट त्रस्त लोगों ने दियें है झुग्गीं वालों ने नही । झुग्गी गरीब आदमी नही बल्कि आपके कार्यकर्ता और दबंग लोग झुग्गीया डलवाकर पैसा वसूल रहे है । नही तो क्या गरीब आदमी की इतनी हिम्मुत कि सविर्स रोड पर झुग्गी के नाम पर दो दो मंजिलें मकान बनालें और पाश इलाकों कों झुग्गी के नाम पर पक्‍के मकान बनायें और सरकार की अरबों रूपयें की जमीन पर कब्जा् करें , उन गरीबों के पास ऐसे ऐसे पक्‍के मकान बनाने के लिए पैसा कहा से आया ? ये सब झुग्गी के नाम पर आप लोगों की आैर पैसे वालों की ही चाले है ।

Tuesday, 3 November 2015

मैं सभी पार्टियों के भक्तों व चापलूसों से एक बात पूछना चाहता हॅू कि क्या दिल्ली की किसी समस्या या देश की किसी समस्या के बारे में ये जनता कुछ लिख सकती है या नही ? क्या सिर्फ चापलूसों को ही लिखने या कहने का हक है ? वे चापलूस जो जनता की समस्या के बारें में लिखने वालें या कहने वालों को अन्‍य पार्टी का भक्त बताकर उस समस्या की अहमियत ही खत्‍म कर देते है ऐसे चापलूस  इस देश के और इस देश की जनता के सबसे बडे दुश्मन है लेकिन उन्होने तो सिर्फ चापलूसी करके अपना उल्लूा सीधा करने की होड लगा रखी है । जनता में से यदि कोई किसी समस्या को लिखता है तो अन्य पार्टी का भक्त बताकर उस समस्या पर ध्यान नही देने देते और उसमें दूसरी पार्टी की कमिया गिनाने लगते है ये चापलूस यदि उस समस्या को क्यो दूर नही किया जा रहा है या उसे किस प्रकार दूर किया जा सकता है ये आम जनता को बतायें तो क्या उनकी रोटी हजम नही होगी ? मैने दिल्ली की मुख्य समस्या परिवहन व्यवस्था के बारें में जितनी बार भी लिखा मुझे मोदी भक्त बताकर मोदी सरकर की कमी गिनाने लगें । यदि यही कमी गिनानी है तो फिर काम करने की बात क्यों की जाती है ? इस देश को किसी से भी खतरा नही है खतरा है तो सिर्फ इन चापलूस गददारों से जो काम करने के बहाने बनाकर अन्य सरकार की कमी निकालने लगतें है । लेकिन जो काम दिल्ली सरकार कर सकती है उसे करने में ये चापलूस किस्म के लोग टांग अडाते है । परिवहन व्यवस्था के सुधारने में कोई सरकार या नेता या राज्यपाल दखल नही दे सकते है तो उसमें उनकी कमिया गिनाने लगते हैं और बहाने बनाते है । आज दिल्ली की सबसे बडी समस्या परिवहन व्यवस्था है जो दिल्ली सरकार खासकर केजरीजी की ही देन है। इसे दिल्ली सरकार चाहे तो एक दिन में दूर कर सकती है लेकिन उसके चापलूस लोग करने नही देना चा‍हते क्योकि उनका बिजनेस बन्द हो जाएग। आज केजरी समर्थको आटोवालों और फुटपाथ पर कब्जा करने वालों की वजह से दिल्ली में हर समय जाम लगा रहता है।क्या केजरी जी को सिर्फ आटो वालों, झुग्गी वालों और फुटपाथ पर कब्जा करने वालों ने ही वोट दियें हैं? दिल्ली को केजरीजी दिन प्रतिदिन स्लम/नरक की ओर धकेल रहे है। आज दिल्ली विश्व की सबसे अस्वच्छ (गन्दगी और बदबू वाली) राजधानी है । केजरीजी ने 45 करोड रूपयें के प्रत्ये्क अखबार में विज्ञापन देकर ये तो बताने की जनता को कोशिश की कि मैने एम सी डी को पैसा दे दिया लेकिन सफाई करवाने के लिए कोई कदम नही उठाया। केजरीजी सिर्फ दूसरें राज्यों के हादसों में उॅगली करना तो जानते है लेकिन दिल्ली की मुख्य समस्या की तरफ उनका कोई ध्या‍न नही है क्योकि जब से सरकार बनी है आज तक इस विषय पर केजरीजी ने या उसकी सरकार के किसी विधायक ने कोई काम ही नही किया । उनका ध्यान तो केवल चाय नाश्ते /लंच/डिनर की मीटिगों/उदघाटनों पर ही रहता है । जिसका उदाहरण वे खुद इन मीटिगों/उदघाटनों के अपने वीडियों अप लोड करके दे रहे है । क्‍या ये इसलिए किया जा रहा है ि‍फर तो सरकार आनी ही नही है ?