Monday 9 November 2015

असहिष्‍णुता (असहनशीलता)

मै पिछले कई दिनों से अखबारों में और टी वी समाचारों में एक शब्‍द असहिष्‍णुता का प्रयोंग  बार बार देख रहा हॅू । मै धन्‍यवाद देना चाहूंगा  उसे जिसने पहली बार अपने मतलब के लिए इस शब्‍द का धामिर्क स्‍त्‍र पर  प्रयोग किया और लोगो का ध्‍यान  इस शब्‍द की ओर खीचने में भी कामयाब रहा । उक्‍त शब्‍द के बारें में कई मेरे जानकारों ने पूछा कि  इस शब्‍द का असली मतलब क्‍या है और देश के चापलूस लोग इस शब्‍द का बार बार इस्‍तेमाल क्‍यों कर रहे है । मैने कहा यही तो दरबारी लेखको  का दिमागी खेल है जनता को कैसे मूर्ख बनाये ये तो चापलूस लेखक भलीभाति जानते है । मैने उन्‍हे बताया कि इस शब्‍द का अर्थ है असहनशीलता,  तो उन लोगों का जवाब सुनकर मुझे बडी खुशी हुई । उन्‍होने कहा कि धामिर्क असहनशीलता कहा है,  असहनशीलता तो  अब ये लोग पदक लौटाकर फैलाना चाहते है । दादरी जैसी घटना इंसानियत के नाम पर कलंक है लेकिन धामिर्क असहनशीलता नही कही जा सकती । क्‍योकि वहा के लोगों ने जिस तरह से नेताओ से बार बार वहा न पॅहुच कर माहौल खराब न करने की सभी धर्म के ठेकेदारों से अपील की थी । जो हादसे के भुगत भोगी है उन  लोगों ने हाथ छोडकर उस गॉव में आने के लिए मना किया  यदि उन्‍हे वहा किसी भी प्रकार का कष्‍ट होता तो वे इस प्रकार नेताओं से इस मामले पर राजनीति न करने के लिए हाथ जोडकर नेताओ से विनती न करते । ये चालें  तो कोई और ही चल रहा है जो दो भाईयों/पडोसियों/गाववालों/हमदर्दों के बीच नफरत की दीवार खडी करके अपना उल्‍लू सीधा करना चाहता है । बस उसे ही हम लोंगों को पहचानना है जो ये बीज बोना चाहता है । तो भाईयों अपना इंसानियत का धर्म मत भूलों । यद‍ि ये धार्मिक अ‍सहिष्‍णुता है तो इससे पहले तो लगभग हादसे हुए है जिनमे 10 से उपर ही लोग मारे गयें थें तब ये ले‍खक या इतिहासकार कहा थें तब क्‍यों इन्‍होने पदक वापिस नही किये । लेकिन इन पदक लौटाने वालों का असली मक्‍सद पदक लोैटाना नही है । उनका असली मक्‍सद सुरक्षा परिषद में मिलने वाली स्‍थाई सीट को रोकना है अौर अपने देश की बेइज्‍जती करना है जो लोग एक देश के तीन देश करने से नही हिचके वे ऐसा कैसा होनें दे । इसके पीछे बहुत बडी लोबी लगी हुई है । इसलिए मेरे देश के सच्‍चे नौजवानों नेताओं के गलत ब्‍यान बाजी में मत फॅसों । अपने विवेक से काम लों । गॉव में जब कोई कष्‍ट होता है उसका पडोसी ही उसके काम आता है  कोई भी नेता काम नही आता है । आज तक इतने दंगे हुए क्‍या कभी कोई नेता या उसका परिवार उसमें मारा गया । नही मारा गया । उनमे मरने वालें रोज काम काज करनेवालें  गरीब लोग होतें है । इस बात को समझों मेरे प्‍यारे दोस्‍तों । 

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