असहिष्णुता
मै न तो कोई लेखक हॅू, ना इतिहासकार, ना साहित्यकार,ना फिल्मकार और ना ही कोई वैज्ञानिक हॅू मुझे ऐसा कोई पदक भी नही मिला जिसे लौटाकर मै कांग्रेस के अब तक के शासन का विरोध कर सकू अपने दिल का दर्द ब्या कर सकू । भारत के साथ आजाद हुए देश कहॉ से कहॉ पहॅुच गयें । एक तरफ तो हम मंगल ग्रह पर पहुॅच गये और परमाणु बम बना लिये दूसरी तरफ आज भी हमारें देश में गरीबों के नाम हजारों योजनाऐ चलने और आरक्षण होने के बाद भी करोडों लोंग और बच्चे भुखे मर रहे है क्यो ? क्योकि ये योजनाऐ और आरक्षण गरीबों के लिए न होकर नेताओ के चापलूसों के लिए ही था । गरीबों के नाम पर आज नेता और उनके चापलूस ही तो देश में मजे कर रहे है । ऐसा ही एक और उदाहरण जनता को देखने को मिल रहा है जो कांग्रेस की पोल खोल रहा है और वो है पदका का लौटाना । ये सारे पदक कांग्रेस के शासन काल में दिये गयें है ।
जैसी राजनीति चापलूस लेखकों ने हिन्दी को न बढने के लिए कर रखी है वही लेखक ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग करके और वही चापलूस लेखक अपने पदक वापस करके जनता को गुमराह करके देश को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे है । यदि ये पदक इन लेखको को अपने दम पर मिले होते तो वे इनकी अहमियत समझतें और ये रास्ता नही अपनाते । ये पदक उन्हे कांग्रेस के नजदीकी होने और चापलूसी के बदले मिले है, नाकि उनकी काबिलियत के बल पर । कांग्रेस के वही नेता लोग सत्ता के दौरान जिनकी सिफारिश पर ऐसे चापसूसों को पदक दिये गये है दबाव बनाकर वापिस करवा रहे हैं ताकि आज की सरकार को बदनाम कर सके और वह काम की तरफ ध्यान न देने के बजाय इस काम में उलझ जाय । इसको जनता तर्क के साथ समझ सकती है :
मै न तो कोई लेखक हॅू, ना इतिहासकार, ना साहित्यकार,ना फिल्मकार और ना ही कोई वैज्ञानिक हॅू मुझे ऐसा कोई पदक भी नही मिला जिसे लौटाकर मै कांग्रेस के अब तक के शासन का विरोध कर सकू अपने दिल का दर्द ब्या कर सकू । भारत के साथ आजाद हुए देश कहॉ से कहॉ पहॅुच गयें । एक तरफ तो हम मंगल ग्रह पर पहुॅच गये और परमाणु बम बना लिये दूसरी तरफ आज भी हमारें देश में गरीबों के नाम हजारों योजनाऐ चलने और आरक्षण होने के बाद भी करोडों लोंग और बच्चे भुखे मर रहे है क्यो ? क्योकि ये योजनाऐ और आरक्षण गरीबों के लिए न होकर नेताओ के चापलूसों के लिए ही था । गरीबों के नाम पर आज नेता और उनके चापलूस ही तो देश में मजे कर रहे है । ऐसा ही एक और उदाहरण जनता को देखने को मिल रहा है जो कांग्रेस की पोल खोल रहा है और वो है पदका का लौटाना । ये सारे पदक कांग्रेस के शासन काल में दिये गयें है ।
जैसी राजनीति चापलूस लेखकों ने हिन्दी को न बढने के लिए कर रखी है वही लेखक ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग करके और वही चापलूस लेखक अपने पदक वापस करके जनता को गुमराह करके देश को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे है । यदि ये पदक इन लेखको को अपने दम पर मिले होते तो वे इनकी अहमियत समझतें और ये रास्ता नही अपनाते । ये पदक उन्हे कांग्रेस के नजदीकी होने और चापलूसी के बदले मिले है, नाकि उनकी काबिलियत के बल पर । कांग्रेस के वही नेता लोग सत्ता के दौरान जिनकी सिफारिश पर ऐसे चापसूसों को पदक दिये गये है दबाव बनाकर वापिस करवा रहे हैं ताकि आज की सरकार को बदनाम कर सके और वह काम की तरफ ध्यान न देने के बजाय इस काम में उलझ जाय । इसको जनता तर्क के साथ समझ सकती है :
क्र | नाम/स्थान | दिनाक | स्थान | मृत्यु |
1 | 1984 सिक्ख दंगे | 31 अक्टूसे 04 नव 1984 | दिल्ली | 2800 सिक्ख |
2 | देसरी ग्राउंड लुधियाना | 28 मार्च 1986 | लुधियाना पंजाब | 13 हिन्दू |
3 | 29 मार्च 1986 | जालंधर पंजाब | २० हिन्दू लेबर | |
4 | बस पैसेंजर सामूहिक हत्या | 25 जुलाई 1986 | मुक्तसर पंजाब | 15 हिन्दू |
5 | बस पैसेंजर सामूहिक हत्या | 30 नव 1986 | खुददा पंजाब | 24 हिन्दू |
6 | हाशिमपुरा सामूहिक हत्या | 22मई 1887 | मेरठ उ0 प्र0 | 42 मुस्लिम |
7 | बस पैसेंजर सामूहिक हत्या | जुलाई 1987 | फतेहाबाद हरियाणा | 80 हिन्दू |
8 | जगदेब कला सामूहिक हत्या | 06अगस्त 1987 | पंजाब | 13हिन्दू |
9 | राजबाह सामूहिक हत्या | 31मार्च 1988 | पंजाब | 18 हिन्दू |
10 | भागलपुर दंगा | अक्टू 1989 | भागलपूर बिहार |
1000 हिन्दू और मुस्लिम |
11 | हिन्दू पडितों का जातीय सफाया | 1990 | कश्मीर | 400 हिन्दू |
12 | गावाकाडल सामूहिक हत्या | 20 जन 1990 | श्रीनगर कश्मीर |
50 कश्मीरी प्रदर्शनकारी |
13 | रेल यात्री सामूहिक हत्या | 15 जून 1988 | लुधियाना पंजाब |
80 हिन्दू |
14 | रेल यात्री सामूहिक हत्या | दिस 1988 | लुधियाना पंजाब |
49 हिन्दू |
15 | बम्बई दंगे | दिस 1992 से जन 1993 | मुम्बई | 575 मुस्लिम, 275 हिन्दू, 45 अज्ञात और 5 अन्य |
16 | सपोर सामूहिक हत्या | 06 जन 1993 | सपोर कश्मीर | 55 मुस्लिम और हिन्दू |
17 | बिजबेहरा सामूहिक हत्या | 22अक्टु 1993 | बिजबेहरा कश्मीर | 50 मुस्लिम और हिन्दू |
18 | लक्ष्मनपुर सामूहिक हत्या | 01दिस 1997 | अरवाल बिहार | 58 |
19 | वंधामा सामूहिक हत्या | 25 जन 1998 | वंधामा जम्मू कश्मीर | 23 हिन्दू |
20 | प्रानकोट सामूहिक हत्या | 17 अप्रेल 1998 | जम्मू और कश्मीर | 26 हिन्दू |
21 | चपनारी सामूहिक हत्या | 19 जून 1998 | चपनारी जम्मू और कश्मीर | 25 हिन्दू |
22 | चाम्बा सामूहिक हत्या | 03 अगस्त 1998 | चांबा हिमाचल प्रदेश | 35 हिन्दू |
23 | चित्तीसिंहपुरा सामूहिक हत्या | 20 मार्च 2000 | चित्तीसिहपुरा जम्मू कश्मीर | 36 सिक्ख |
24 | गौरंगाटीला सामूहिक हत्या | 2000 | त्रिपुरा | 16 गैर आदिवासी हिन्दू |
25 | बागबेर सामूहिक हत्या | 20 मई 2000 | त्रिपुरा | २५ गैर आदिवासी हिन्दू |
26 | त्रिपुरा आदिवासी सामूहिक हत्या | 1999; 2000 | त्रिपुरा | २० आदिवासी हिन्दू |
27 | नानूर सामूहिम हत्या | 27 जुल 2000 | पश्चिमी बंगाल | 11 मजदूर |
28 | अमरनाथ तीर्थ यात्री सामूहिक हत्या | 01 अग 2000 | जम्मू और कश्मीर | 30 हिन्दू तीर्थयात्री |
29 | किस्तवाड सामूहिक हत्या | 03 अग 2001 | जम्मू और कश्मीर | 19 हिन्दू |
30 | गोधरा सामूहिक हत्या | 27 फब 2002 | गोधरा गुजरात | 59 हिन्दू |
31 | गुजरात दंगा | 28 फब 2002 | अहमदाबाद | 2,044 मारे गये (1224
मुस्लिम और 790 हिन्दू) |
32 | गुलबर्ग सौसायटी सामूहिक हत्या | 28 फब 2002 | अहमदाबाद | 69 (48 मुस्लिम 21 हिन्दू) |
33 | नरौदा पातिया सामूहिक हत्या | 28 फब 2002 | नरोदा अहमदाबाद | 97 मुस्लिम |
34 | रघुनाथ हिन्दू मंदिर सामूहिक हत्या | 30 मार्च 2002 | जम्मू और कश्मीर | 11 हिन्दू मरे 20 जख्मी (हिन्दू भक्त) |
35 | कासिम नगर सामूहिक हत्या | 13 जुल 2002 | जम्मू और कश्मीर | 29 हिन्दू |
36 | अक्षरधाम मंदिर हमला | 24 सित 2002 | गुजरात | 29 हिन्दू मरे 79 जख्मी (हिन्दू भक्त) |
37 | रघुनाथ हिन्दू मंदिर हमला | 24 नव 2002 | जम्मू और कश्मीर | 14 हिन्दू मरे 45 जख्मी (हिन्दू भक्त) |
38 | नादीमार्ग सामूहिक हत्या | 23 मार्च 2002 | जम्मू और कश्मीर | 24 हिन्दू |
39 | कालूचक | 14 मई 2002 | जम्मू और कश्मीर | 31 हिन्दू |
40 | मराड सामूहिक हत्या | मई 2003 | केरल | 08 मरे 58 जख्मी |
41 | वाराणसी बम विस्फोट | मार्च 2006 | उत्तर प्रदेश | 28 हिन्दू मरे 101 जख्मी (हिन्दू भक्त) |
42 | डोडा सामूहिक हत्या | 30 अप्रेल 2006 | जम्मू और कश्मीर | 35 हिन्दू |
43 | समझौता एक्सप्रेस सामूहिक हत्या | 18 फब 2007 | दिवाना स्टेशन | 68 मरे ज्यादातर
पाकिस्तानी कुछ भारतीय |
44 | टुमुधीबांध सामूहिक हत्या | अग 2008 | उडीसा | 5 हिन्दू |
45 | कण्डमाल दंगा | अग 2008 | उडीसा | 42 इसाई |
46 | मुम्बई | 26 नव 2008 | मुम्बई | 164 आमनागरिक 11 हमलावर मरे 600 जख्मी |
47 | दंतेवाडा बम विस्फोट | 17 मई 2010 | छत्तीसगढ | 76 नागरिक |
48 | मुजफफरनगर दंगे | 25 अगस्त 2013 से 17सितम्बर 2014 | उत्तर प्रदेश | 42 मुस्लिम 20 हिन्दू 93 जख्मी |
उपरोक्त दंगो मे काफी आम नागरिक बिना खता के मारे गये उस समय ये चापलूस और दरबारी लेखक, कवि, फिल्मकार, वैज्ञानिक और साहित्यकार कहॉ सो रहे थे ?
क्या एक अख्लाक के सामूहिक दंगे में मारे जाने से इनका जमीर जागा है या ये लोग जनता को गुमराह करके देश में सचमुच अव्यवस्था फैलाने की साजिस रच रहे है जिसके पीछे उन सबका हाथ हो सकता है जिनके द्वारा इनको लौटाये जाने वाले सम्मान की प्राप्ति हुई है । मेरी जनता से अपील है कि अपने विवेक से काम लें और ऐसे चापलूस और दरबारी लेखकों, साहित्यकारों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों, फिल्मकारों और कवियों के बहकावें में मत आना ........... वरना ये लोग अपने साथ साथ्ा देश कों और जनता को बरवाद कर देंगें ।
No comments:
Post a Comment